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हाँ-नहीं / देवेन्द्र रिणवा
Kavita Kosh से
हाँ बोलने में
जितनी लगती है
ठीक उससे दुगुनी ताक़त लगती है
नहीं बोलने में
हाँ बोलना यानी
शीतल हवा हो जाना
नहीं बोलना यानी
गरम तवा हो जाना
हाँ बोलने के बाद
कुछ भी नहीं करना होता है
बस मरना होता है
नहीं बोलने के बाद
लड़ना और भिड़ना होता है