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हाँ / प्रकाश
Kavita Kosh से
जितनी देर मैं हाँ करता रहा
उतने क्षण जीवन था
ऐसा नहीं कि हाँ से आता जीवन
उजला ही था
कुछ ऎसी भी रातें थीं
जिनमें चांद अनुपस्थित था
मैंने जब भी किसी ना को हाँ कहा
एक छोटा तारा झलकता देखा
खिड़की से दूर
एक पहाड़ के सिर पर सिर उठाता!