हाइकु / गोपाल बाबू शर्मा / कविता भट्ट
1
दुष्टों का संग
बबूल के पेड़ पे
टँगी पतंग।
दूस्टु कु संग
बबूला डाळा परैं
टंगीं पतंग
2
रेत के टीले
दिखते बड़े ऊँचे
कितने दिन?
रेता यु टिल्ला
दिख्याँदा भौत ऊँच्चा
कथगा दिन
3
दूर ठिकाना
रात भर बसेरा
सुबह जाना।
दूर ठिकाणू
रात भरौ बसेरू
सुबेर जाण
4
हम तो जिए
काँटों की दुनिया में
तुम्हारे लिए।
हम त ज्यूँदा
काँडों कि ईं दुन्या माँ
तुमारा बाना
5
कँगूरे हँसे
पत्थर कब दिखे
नींव में धँसे।
धुर्पलु हैंसी
ढुंगा कब दिख्याँदा
बुन्यात दब्याँ
6
बात निराली
पत्थर को प्रणाम
प्राणी को गाली।
बात अनोखि
ढुंगौं थैं परणाम
मन्ख्यों थैं गाळी
7
कहीं बबूल
कहीं देते खुशबू
जूही के फूल।
कक्खी बबूल
कक्खी देंदा खुसबो
जूही का फूल
8
सोन चिरैया
खा जाएँ नोचकर
घर के बाज़।
सोनै प्वथली
खैयी द्यो कक्खी नोची
घौरौ कु बाज
9
उन्मन मन
दहकता है जैसे
ढाक का वन।
बेचैन मन
जगणु रौंदू जन
ढाकौ कु बौंण
10
जीवन ऐसे
पानी पर बहता
फूल हो जैसे।
जीवन यनु
पाणी मा च बौगणु
फूल हो जनु
11
यौवन रूप
सर्दियों की साँझ ज्यों
भागती धूप।
च ज्वान रूप
ह्यूँदै ब्याखुन जन
भागदु घाम
12
छोटे या बड़े
कोई नहीं अन्तर
माटी के घड़े।
छोटा चा बड़ा
क्वी बि नि च फरक
माटा का घौड़ा
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