भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु / मंजु मिश्रा / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
सर्दी ने छीने
जो पेड़ों के गहने
लाया वसंत

ह्यूँदन लूछी
डाळौ का तगाता
लाई बसन्त
 2.
तितलियों ने
वासंती खत लिखे
मौसम के नाम

प्वतळौं न इ
बसन्ती चिठ्ठी लेखि
मौसमा क नौं
 3.
सर्दी की भोर
चमकतीं हीरे –सी
ओस की बूँदें

ह्यूँदै बिन्सरी
चम्कदि हीरा जनि
ओंसै कि बुन्द
 4.
रात रोई थी
चमक रहे दूब पे
ओस- से आँसू

रात रुणि रै
कमकणा दुब्ला माँ
ओंसा क आँसु
 5.
लाया वसंत
खुशियों की आहट
बिखरे रंग

ल्हैगि बसन्त
खुस्यों का सबद इ
फैल्याँ च रंग
6.
उड़ते ख्वाब
हवा की डोरी संग
जैसे पतंग

उड़दा स्वीणा
हवा कि डोरि गैल
जन पतंग
 7.
ढल रहा है
सागर की गोद मे
थका –सा सूर्य

ढ़लकुणु च
समोदरै खुक्लि माँ
थक्यूँ सि सुर्ज
 8.
पुल के पार
डूब रही है साँझ
लाल सिंदूरी

पुळा क पार
डुब्णी संध्या हपार
लाल सिंदुरी
9.
मिल रहा है
धरती से आकाश
दृष्टि का भ्रम

मिलणु च वु
पिर्थी गैल आगास
नजरौ फर्क
 10.
रात झील में
दूध के कटोरे-सा
उतरा चाँद

रात ताल माँ
दुधा का कटोरा सि
उतरी जून
11
मानो गुलाल
उड़ा गया सूरज
शर्मीली शाम।

ल्हग्णु गुलाल
सुर्ज न उड़ै यालि
सर्म्याळि संध्या
12
लाल गगन
शाम के सिंदूर में
रंग रँगीला।

लाल आगास
ब्याखुनि सिन्दूर माँ
रंग रंगिलु