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हाइकु / मीनू खरे / कविता भट्ट

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1
बड़ी उदासी
हैं सात समन्दर
धरती प्यासी !

भौत उदासि
छन सात समोद्र
पिर्थी च तीसि
2
क्या ग़म है जो
धरा सूखी पड़ी है?
बात बड़ी है

क्य खौरी च जु
पिर्थी सूक्खि पड़ीं च
बात बड़ी च
3
बोरिंग सूखी
ज्यों किसी बूढ़ी माँ के
निचुड़े स्तन

बोरिंग सुखि
जन कै बुड्या ब्वे का
निचुड़िन दूदी
4
ये रिक्शेवाले
घूमते पैडल से
खींचें निवाले

यु रिग्सा वाळा
घुम्दन पैडल न
खैंच्वन गास
5
मौन सम्वाद
प्यार के पलों में भी
वाद-विवाद

बौग बात कि
माया कि घड़ि माँ बि
ठोका-मुँगरि
6
तुम्हारे बाद
ख़्वाब भी बेरंग हो
बैरंग लौटे

तुमारा बाद
स्वीणा बि बेरंग ह्वे
निरास लौट्या
7
आज आना ना!
ख़्वाब में भी तो मिले
सदियाँ बीतीं

आज ऐ जै दौं
स्वीणा माँ बि त मिल्याँ
साक्यों बित्यन
8
बरसे ओले
खड़ी फ़सल बोले
आ संग रो लें!

बरखि ढाँडू
खड़ी फसल बुल्दी
औ दग्ड़ी रोला
9
व्यर्थ ला रहा
वसन्त में सावन
लौट जा घन

फालतु ल्हौंणु
बसन्त मन्जें सौंण
लौट बादळ
10
बूँद का मोल
अँखियों ने बताया
है अनमोल

बुन्दौ कु मोल
आँख्यों न बताई
च अनमोल
11
बारिश क्या है?
मेघों से धरती का
महारास है

बरखा क्य च
बादळ-र पिर्थी कु
महारास च
12
पत्ते नहला
बूँदें चली वापस
मेघ के पास

पत्तों नह्वे कि
बुन्द चलि वापस
बादळ मुंग
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