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हाइकु / शशि पाधा / कविता भट्ट

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1
नेह- बौछार
न भीगे, न ही सोखे
पत्थर दिल ।

प्यारै बौछार
न भिजु, न ई चुसू
ढुंगु पराँण
2
धरा से मिली
आसमान से कूदी
बाँवरी धूप ।

पिर्थी से मिलि
द्योरा बिटि कुतगि
बौळया घाम
3
ओ री तितली !
सतरंग चुनरी
किसकी भेंट ।

ओ रे प्वतळी!
सतरंगी चुन्नी च
कैकी समूँण
4
संयम मेरा
हार न समझना
संस्कारी हूँ मैं ।

दीर्घम मेरु
हार न समझी वा
संस्कारी छौं मि
5
ऊँची मुँडेरें
झिलमिल दीपक
बाबुल–घर।

उच्ची भीड़ी माँ
झमलान्दु द्यू जनु
बुबा जी घौर
6
सब ठीक है
कह देना भ्रम है
मन से छल।

सौब खूब च
बोलण भरम च
मन से ध्वका
7
चलो मान लें
भाग्य बदलता है
मुझे क्यों भूला ।

चला मानी ल्या
भाग बदलेन्दु च
मि क्याँकु भुलि
8
अक्षर झरे
कल्पना सरसि से
गागर भरे ।

आखर पोड़ी
कल्पना धारा बै
गागर भ्वरे
9
ओ दोपहरी!
घनी घाम चुभती
संझा बुला री ।

हली दोफरा!
घौणि, घाम चुबदि
संध्या बुलौ ली।
10
क्यों दोहराऊँ
इस व्यथा -कथा को
चुप पी जाऊँ ।

किलै द्वीरौंण
ईँ खौरी-कत्था बल
बौग कै पी द्यौ
11
धीर सद्भाव
करते तुरपाई
उधड़े रिश्ते।

दीर्घम-सभौ
करदन तुलपै
उध्ड़याँ नाता
12
रोको कहारो!
बाबुल का अंगना
छोड़ा न जाए।

रोका डोलेरू
बुबाजी कु यु चौक
छोड़ेणु नि च
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