भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु / सुशीला राणा / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
बजें घुँघरू
मंदिर कभी कोठे
यही किस्मत ।

बजू घुँगूर
मंदिर कबि कोठा
इ च करम
2
रूह की धुन
हँसी कमनसीबी
पैरों से बँधी।

आत्मै कि ताल
हैंसी बुरु करम
खुट्टों माँ बंधि
3
चीखीं दीवारें
घुँघरू के शोर में
बिकी आबरू।

किलैंन पाळि
घुँगूर क रौळा माँ
बिकि इजत
4
भक्ति-मुजरा
श्रद्धा कभी लांछन
घुँघरू वही।

भग्ति-मुजरा
सरधा कबि लाँछन
घुँगूर व्यिई
5
पीढ़ी तरसें
आँगन में घुँघरू
कभी तो बजें।

साक्यों तरसिं
चौक माँ ईँ घुँगूर
कबि त बज्दा
6
खोजा बहुत
नदी-घट-नयनों में
मिला न पानी।

खुजाइ भौत
गंगा-घौड़ो-पाणि म
मिलि नीं पाणि
7
प्यारी चिरैया
हँसे हैं पत्ते-शाखें
तुमको पाके

प्यारि प्वथली
हैंस्दन पत्ता-फाँगा
तुम तैं पैकि
8
हवा बासंती
लाई पिया की पाती
हँसती गाती

हवा बसन्ति
ल्हाई स्वामी पंगत
हैंसदि गाँदि
9
लिखे प्रकृति
प्रीत के अनुबंध
फूलों के संग।

लेखु पर्किर्ति
प्रीता का सौं-करार
फुल्लू कि गैल
10
नेह-निर्झर
क्लांत-श्रांत जग का
ज्यों हो पुष्कर।

माया कु धारु
बिचैन सांत दुन्या
जन पुस्कर
11
कवि का कर्म
शब्दों का ताना-बाना
भावों का मर्म ।

लिख्वारौ कर्म
सबदु कु जंजाळ
भौ कु यु सार
12
व्याकुल प्राण
बरसो घनघोर
मेघा दो त्राण ।

बिचैन प्राणी
बर्खि जा जमी कैंईँ
बादळ मुग्स
-0-