भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 103 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
घर-बा‘रै आ
पण मत खो दिये
नारीपणो थूं
नारी-प्रकृति
रच, अमर हुयो
सृस्टि-रचारो
माॅड बण थूं
माथै बिंदी ना त्याग
भारत-नारी