भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 125 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पै‘ला भी आयो
अबार आयोड़ो हूं
फेर आऊंला


काच देखतां
बीत्यो आखो जीवण
अजै अंजाणो


छापा-तिलक
आरती‘र भजन
मन-नास्तिक