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हाइकु 144 / लक्ष्मीनारायण रंगा
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जोबन हुवै
चढतो सूरज‘र
ढळती छींया
मत रो मन
कद मिल पाया है
राधा-किसन
म्हारो अभाव
सांस-सांस सुळगै
थारो दुहाग