भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 28 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
रचां साहित्य
पण रचां कद हां
खुदो खुद नैं?
सिराणै टंग्यै
कलैंडर सूं नीं लां
मौत रो ज्ञान
भस्मासुर तो
सदीव खुद हाथां
हुवै है भस्म