भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 28 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचां साहित्य
पण रचां कद हां
खुदो खुद नैं?


सिराणै टंग्यै
कलैंडर सूं नीं लां
मौत रो ज्ञान


भस्मासुर तो
सदीव खुद हाथां
हुवै है भस्म