भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाइकु 54 / लक्ष्मीनारायण रंगा
Kavita Kosh से
इण हालातां
वन-जीव मिलैला
तस्वीरां में ई
थूं परमात्मा
म्हैं आत्मा, कांई थूं भी
देवै दुहाग?
मा री सुरक्षा
पूतां रो करतब,
बचाओ नदयां