भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाइकु 79 / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उडग्यो पंछी
ऊंचा अकासां मांय
तरसै आंख्यां


नाग पाळ सो
गळै-छाती लगासो
बैई काटै ला


प्रेम री गंध
मै‘का दै पूरी जूण
जे मिल जाय