हाथ में तू लेलऽ लाठी / पं. चतुर्भुज मिश्र
जब भोजपुरिया तइयार रही तब रोब केहु कइसे गांठी ।
फेर कसऽ लंगोटा तू आपन फेर हाथ में तू लेलऽ लाठी ॥
हमनी के जिनगी झूर भइल ।
नेहिया के नगरी दूर भइल।
अपनाइत के लमहर रमना-
कोसन से कठा धूर भइल ।
फेर के रहिया छोड़ तू अब निकल चलऽ तिरा भाठी ।
फेर कसऽ लंगोटा तू आपन फेर हाथ में तू लेलऽ लाठी ॥
घर फोर केहु बहका जाला।
मन फोर केहु सहका जाला।
ले धरम जाति के चिनगारी-
गांवा गाई लहका जाला।
मब कुकुर भोग लगावे ले, कौरा कौरा हमके बांटी ।
फेर कसऽ लगटी तू आपन फर हाथ में तू लेलऽ लाठी ॥
भोजपुरी कविरा के बोली ।
रसगर अइसन ठमकत डोली।
हुंकार बहादुर कुँवर के ई-
मंगल पांडे के हऽ गोली ।
जब सिंह गर्जना उठी इहां, लउकी ना कहीं बकरी पाठी।
फेर कसऽ लंगोटा तू आपन फेर हाथ में तू लेलऽ लाठी ॥
ई बाल्मीकि के माटी हऽ ।
ई बुद्ध धरम के घाटी हऽ ।
गाँधी के सत्य अहिंसा के-
जीयत जागत परिपाटी हऽ ।
अबहूँ तऽ मन पारऽ भइया आपन पहिले के कद काठी ।
फेर कसऽ लंगोटा तू आपन फेर हाथ में तू लेलऽ लाठी ॥
कहिया ले निसुआइल रहबऽ ।
कहिया ले भकुआइल रहबs ।
इ जुग कहंवा से कहाँ गईल-
कहियाले ठकुआईल रहबs ।
रण भेरी के आवाज सुनऽ अब छोड़ चलऽ चुम्माचाटी।
फेर कसऽ लंगोटा तू आपन फेर हाथ मे तू लेलऽ लाठी ॥