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हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी / कालीदास
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हाथ हँसि दीन्हों भीति अंतर परसि प्यारी,
देखत ही छकी मखि कन्हर प्रबीन की.
निकस्यो झरोखे माँझ बिगस्यो कमल सम,
ललित अँगूठी तामें चमक चुनीन की.
कालीदास तैसी लाल मेहँदी के बूंदन की,
चारु नख चंदन की लाल अँगुरीन की.
कैसी छबि छजति है छाप औ छलान की सु,
कंकन चुरीन की जड़ाऊ पहुँचीन की.