हाथों का जादू / विजेन्द्र
जिस लोहे की पत्ती से
अमर सिंह घास काटता है
उसकी धार तेज़ है
हर रोज़ वह उसे पत्थर पर
पैनाता है
हर रोज़ घास काटता है
वह उसका औज़ार है
एक बेदाग़ अचूक साथी
लगातार काटने से उसकी धार
भौंथराती नहीं
उस पर जंग नहीं लगती
यही अमर सिंह की साधना है
जो काम-
अमर सिंह तेज़-पैनी पत्ती से करता है
वह मेरी कविता क्या करेगी
शब्द अरबी घोड़े नहीं हैं
जो एक एड़ लगते ही सरपट भागें
वे वााग्देवी की क्रियाएँ हैं
जो प्राणों की ताक़त से पैदा होती हैं
सहसा-
एक दुधमुहें बच्चे को
धूल में खेलते देख मैं ठिठका
उसने जब मुझे देखा
तो नीचे के दो दाँत दिखे
जैसे कठोर धरती से दो कल्ले फूटे हों
हर सुबह मंगली दादी आती है
पहले फिनायल पड़ी बाल्टी में
पौंछा डुबोया
फिर फर्श रगड़ा
क्या जादू है हाथों में
पौंछा रगड़ने से कठोर बनती है हथेलियाँ
फर्श चिकना होता है।
मेरा काम गंदगी करना है
दादी का काम फर्श चिनाना।
पानी बार-बार औंधाया
पौंछा बार-बार निचोड़ा
शीत हो
चाहे गरमी
उसके माथे पर
पसीना झलकता है
तुम डरते हो
उसकी निगाहें
तुम्हारी कविता को गंदा कर देंगी
चित्रों को बदरंग
भाषा को बेजान!
आज़ादी ने भीलों को सिखया है
अगर तुम्हारे जंगल कोई उजाड़े
मरने-मारने को तैयार रहो
बिना रोए
माँ बच्चो को दूध भी नही पिलाती
हक़ गिड़गिड़ाहट से नहीं मिलता
जैसे फूल चढ़ाने से वरदान
समय की सींगों को
पाँचों उँगलियो से पकड़ना पड़ता है
धारदार इस्पात के तेज़-तेज़ दाँत
नौंकदार कीलें, चोबे, ठोस छड़ें
बे-नबी सरिया
ओह पस्तहिम्मत कवि
पत्थर के कोयलों की दहक ने
आज का चित रचा है।
मेरी इच्छा अनन्नास के रस के लिए
बेचैन है
पर औक़ात अधसड़े पके टमाटरों की है
सस्ती सब्ज़ियाँ ख़रीदने वालों की संख्या
दुनिया में ज़्यादा है
जिनमे खेत जोतने का साहस है
उनकी भाष असरदार और पैंनी है
पस्तहिम्मत लोगों ने कल जुलूस निकाला
अपनी निजी दुनिया को लेकर
और मिस बौबी ने पोमेरियन पाला है
घर को रखाने के लिए!
बरसा थमी-
मौसम आने पर कपास के टैंट खिलने लगे-
लोहा काटने वाला आदमी
तेज़ धूप में
बदन काला कर
जो कुछ बोलता है
उसमें अंदर की आँच
लहकती है
और एक भरोसे की भनक भी !
2007