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हादसे उम्र-भर आज़माते रहे / देवेश दीक्षित 'देव'
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हादसे उम्र-भर आज़माते रहे
चोट खा-खाके हम मुस्कराते रहे
यूँ गुज़रता रहा ज़िन्दगी का सफऱ
बिन तुम्हारे क़दम डगमगाते रहे
आंधियों से अदावत रही उम्र-भर
हम हवाओं में दीपक जलाते रहे
हज़ औ तीरथ को जाने से क्या फ़ायदा
गर बुज़ुर्गों का दिल हम दुःखाते रहे
बाँट देगी सियासत हमें दो तरफ़
हम जो मंदिर औ मस्ज़िद बनाते रहे
'देव' पीने का जिसको सलीक़ा न था
मैकदे उनकी क़िस्मत में आते रहे