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हाय, कोमल गुलाब के गाल / सुमित्रानंदन पंत

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हाय, कोमल गुलाब के गाल
झुलस दे ऊष्मा का अभिशाप?
प्रथम यौवन, कलियों के जाल
स्वयं कुम्हला जाएँ चुपचाप!
विजन वन कुंजों में भर प्यार
तरुण बुलबुल गाती थी गान,
आज उसके उर के उद्गार
किधर हो गए विलीन अजान!