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हाल गाँव के/ केशव मोहन पाण्डेय
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अस मन बूझीं
हाल गाँव के
निमिया के
छुवत बयार के
पिपरा तल
लहरत छाँव के।
हुलस-हुलस
मन मोरवा नाचे
तोताराम
रामायन बाँचे
उछल-उछल के
गुद्दी देखावे
कलाकारी निज पाँव के।
राग अलापे
कोइलर रागी
महोखा बाबा
बनल वैरागी
बिपत कटे ना
आजुओ कहीं से
पपीहा के नेहिल भाव के।
भाँति-भाँति के
चिरई-चुरुंग, जन
भाँति-भाँति के
सबके चिंतन
भाँति-भाँति
उपचार मिलेला
भाँति-भाँति के घाव के।
गइल राग-रंग
भइल छलावा
पइसल रोग,
बेअसर बा दावा
धिक्कारे मन
मइल देख के
मनई-हीन अलाव के।