भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हासिल है जीवन का / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुझसे मिलना
तुझमें समा जाना
अनिर्वचनीय तृप्ति
पा जाना।
सपना क्या टूटा कि
असीम हाहाकार में
खो जाना
पाने और खोने का
यही क्रूर सिलसिला
हासिल है जीवन का
हे प्रिय!
-0-
13.5.2023