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हिंडोले जैसी झूमती पागल ऋतु / रवीन्द्रनाथ त्यागी

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हिंडोले जैसी झूमती पाग़ल ऋतु
वक्ष-सी फड़कती हवाएँ
तुम्हारी साड़ी की भाँति पहली हरी-हरी घास
वर्षा का अनन्त क्रम
झील-सा डूबेगा दिन

निगाहें फिर मुड़ गईं घड़ी की ओर
वही एक सच्ची दिशा
हो गया दफ़्तर चलने का वक़्त