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हिंसरि की गूँदी / बृजेन्द्र कुमार नेगी
Kavita Kosh से
हिंसरि की गूँदी
एक दिन की ज्वनि
कांडो कु बीच
कन बैठी छै स्याणि।
लाल साड़ी पैरि
हारू दुशला मा
टुप्प बैठीं
कन छै तरसाणी।
उड़दा पंछी
रिंगदा मनिख
कैका हत्थ
नि छै आणी।
ललचांदा चखुला
फड़-फड़ उड़दा
फंखुड़ चिराणा
पर गिच्च नि छै आणी।
मनिख रिंगणा
लालु चुवाणा
खुट्टा उच्चकाणा
पर जम्मा नि छै लिम्हेणी।
हिंसरि की गूँदी
एक दिन की ज्वनि
कांडो कु बीच
कब बैठी छै स्याणि।