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हितैसी कुकुर / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
कुकुर रेहेॅ या कि कुत्ता,
होय छै वफादार जैन्होॅ गोड़ोॅ रोॅ जूता।
बचाय छै काँटोॅ-कुस्सोॅ कंकड़ पथलोॅ सें,
बढ़ाय छै शोभा सूरत शकलोॅ सें।
चलै बुलै में मिलै छै बोॅल बुता
कुकुर रेहेॅ या कि कुत्ता।
दुआरी पर रहै छै दिन-रात बैठलोॅ,
अन-चिन्हार कोय आबेॅ तेॅ दौडै छै भूकलोॅ।
सेवा करै छै जैन्होॅ हुकमैता,
कुकुर रेहेॅ या कि कुत्ता।
दिन तेॅ दिन भागै छै चोर लफंगा,
खाय केॅ ओन रहै भला चंगा।
है रंग नै करै छै "संधि" पुता,
कुकुर रेहेॅ या कि कुत्ता।