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हिन्दी / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
Kavita Kosh से
हिन्दी आत्मा देश की, संस्कृति की पहचान।
राष्ट्र धर्म की चेतना, विश्वप्रेम विज्ञान॥
हिन्दी गौरवबोध है, अपनापन अरु नेह।
भारत माँ की आत्मा, भारत माँ की देह॥
संस्कृत की बेटी भली, संस्कृति का अनुराग।
स्वाभिमान, सच्चेतना, मानवता, शुचि त्याग॥
यह मैत्री की महक है, यह सुहागसिन्दूर।
यह मणिमाला ज्ञान की, यौवनरस से पूर॥
माँ की इसमें माधुरी, भार्या का सा प्यार।
गुरु जैसा उपदेश है, शिक्षा का भण्डार॥
घर, वन, सभा, समाज में हिन्दी को सप्रेम।
बोलें, हस्ताक्षर करें, इसमें है सुख क्षेम॥
बातचीत, घरबार हो, प्यार हो कि व्यापार।
सभी जगह पर कीजिये हिन्दी का व्यवहार॥