हिन्दी का ढोल / शैल चतुर्वेदी
जिन दिनों हम पढ़ते थे
एक लड़की हमारे कॉलेज में थी
खूबसूरत थी, इसलिए
सबकी नॉलेज में थी
मराठी में मुस्कुराती थी
उर्दू में शर्माती थी
हिन्दी में गाती थी
और दोस्ती के नाम पर
अंग्रेज़ी में अँगूठा दिखाती थी
एम.ए. करने के बाद
हमने उससे कहा-
तुम भी एम.ए.
हम भी एम.ए.
अब तो इस अँगूठे को हटाओ
हम तुम में डूब जाए
तुम हममें डूब जाओ!"
वह मुस्कुराकर बोली-
शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है
हिन्दीवाले की बीबी बनकर
आँसू नहीं पीना है
लड़को की क्या कमी है?
एक ढूंढो, हज़ार मिलते है
तिज़ोरी में ताकत हो तो
डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं।
हमारी बहन भी हिन्दी में एम.ए. है
लेकिन ऐसी ससुराल मिली है
जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं
और कुत्ते भी समझते है!"
और हमारी समझ में तब आया
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला
और वह चौंककर बोला-
"क्या कहा?
लड़का हिंदी में एम.ए. है।
तो भैया, घर में बिठाओ
और बाप-बेटा मिलकर
मीरा के भजन गाओ।"
एक रिश्ता और आया
पर जैसे ही पिताजी ने
हमारा रेट खोला
लड़की का बाप उछलकर बोला-
"का कहा! एक लाख
इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी?
ससुर, ख़ुआब देखत हैं
अपना काँटा के लिए गुलाब देखत हैं
जनते है?
मर जाइएगा
तबहुँ नहीं पाइएगा।"
उसके जाते ही पिताजी
हमसे बोले-
"क्यों बे, हिन्दी के ढोल
और कितने जूते खिलवाएगा बोल
अब तो यही सुनना बाक़ी रह गया है
सुन लिया न
वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है?
लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं
और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं
अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी क़िस्मत में न होता
तो जलवा दिखा देता
माँगनेवाले का घर बिकवाकर
साले को फुटपाथ पर बिठा देता
पहले ही कहा था
हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़
कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए. कर
हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया
सगाई में स्कूटर लाया है
शादी में कार लाएगा
और सुना है लड़कीवाला पूरी बारात को
फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा
यहाँ मौक़ा भी आ गया तो
ठहराने वाला
ठहरा देगा झाड़ के नीचे
और सायकल के नाम पर
कुत्ते छुड़वा देगा पीछे
भागते भी नहीं बनेगा
और बेटा!
तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा
हर बाप के अरमान होते हैं
कि बेटा पढ़ लिखकर कुछ बने
तो उसे कैश करें
और बुढ़ापे में ऐश करें
हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैं
अंटी में जो था सब गँवा दिया
और जब हमारे कमाने का वक्त आया
तो इस हिन्दी के ढोल ने मरवा दिया।"
हमने कहा-
"पिताजी!
दहेज़ लेना पाप है।"
वो बोले-
"चोप्प!
हम तेरे बाप हैं
कि तू हमारा बाप है
खबरदार, जो दहेज को पाप कहा!
और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा!
अबे, हिन्दी के ढोल
जो बेटे का बाप
बिना दहेज़ खाए मरता है
उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है
जा हाथ में कटोरा थामकर
मीरा के भजन गा।"
और हमारे जी में आया
हाथ में तँबूरा लेकर
घर से निकल पड़ें
और गाते फिरें-
"हिन्दी आई न मेरे काम
फिरता हूँ मैं मारा-मारा
सुबह-दोपहर-शाम
पढ़लिख कर हिन्दी मैं हारा
दुनिया कहती है आवारा
जी करता है थाम उस्तरा
बन जाऊँ हज्जाम
हिन्दी आई न मेरे काम।"