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हिन्‍दी / केदारनाथ सिंह

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बिना कहे भी जानती है मेरी जिह्वा
कि उसकी पीठ पर भूली हुई चोटों के
कितने निशान हैं
कि आती नहीं नींद उसकी कई क्रियाओं को
रात-रात भर
दुखते हैं अक्सर कई विशेषण।

कि राज नहीं-भाषा
भाषा-भाषा सिर्फ भाषा रहने दो मेरी भाषा को
अरबी-तुर्की बांग्‍ला तेलुगू
यहां तक कि एक पत्‍ती के हिलने की आवाज भी
मैं सब बोलता हूं जरा-जरा
जब बोलता हूं हिन्‍दी.