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हिमालय / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
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अटल अडिग दृढ़निश्चयी
शिखर श्रृंग हिमखंड
नित भृकुटी भेदता भारती
उत्पाती राष्ट्र उद्दंड...
प्रबल प्रखर प्रिय पौरुषता
निज प्रीत का दे सौगंध
तेरी भारती तुझे पुकारती
कर दंडित ले भुजद्दंद...
हुई खंडित भारत की भूमि
फंस राजनीति के जंग
वही... कोख जना कुपात्र करे
नित कोटि-कोटि षडयंत्र...
उठ जाग हिमालय तय कर दे
निर्धारित कर दे दंड
आतंकित करता जो भूतल
उसे दिखला क्रोध प्रचंड...
साक्षात रहा है तू साक्षी
वह बंटवारे का दंश
वही पीर कचोटे अंतर्मन
हिय प्रतिपल अंतर्द्वंद...
अद्भूत संबल, है रक्षक तू
सिखलादे पाठ प्रबंध
सदैव क्षमा भी कायरता
कर मर्दन धृष्ट घमंड...