भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हियै सूं निसरया है सबद / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राखूं थारै साम्हीं
म्हारै हुवण रो साच
म्हारै बगत रो हेलो
सै कीं ई आं रै मांय

अै सबद
जे म्हारी ओळखाण नीं बण सकै
नीं कर सकै आपरै बगत री
अबखायां सूं जुद्ध, तो
म्हारी कलम रो कांई मोल!

बोल, कीं तो बोल!
चोखा है तो चोखा
अर माड़ा है तो माड़ा
पण हियै सूं निसरया है सबद।