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हिलि मिलि जानै तासोँ मिलिकै जनावै हेत / बोधा

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हिलि मिलि जानै तासोँ मिलिकै जनावै हेत ,
हित को न जानै ताको हितू न बिसाहिये ।
होय मगरूर तापै दूनी मगरूरी कीजै ,
लघु ह्वै चलै जो तासोँ लघुता निबाहिये ।
बोधा कवि नीति को निबेरो यही भाँति यहै ,
आपको सराहै ताहि आपहूँ सराहिये ।
दाता कहा सूम कहा सुँदर सुजान कहा ,
आपको न चाहै ताके बाप को न चाहिये ।


बोधा का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।