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हिसाब / शुभा
Kavita Kosh से
एक
इतना घाटा हुआ समय में भैया इतना घाटा कि
हज़ार साल का
हमारे पुरखों ने नहीं देखे हज़ार साल एक साथ
अब हम देख रहे हैं
दो
कोई लेता नहीं किसे दें हिसाब
थोड़े से पैसे मिले पूरी ज़िन्दगी के लिए
जतन से रखे जतन से ख़र्च किए जतन से रखा हिसाब
अब कोई हिसाब लेता नहीं
जिसे कहो वही कहता है हिसाब तो चलता रहता है
सेन्सिटिव इन्डैक्स कभी ऊपर जाता है
कभी नीचे
अब क्या दोगे हिसाब।