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हुंकार / बाल गंगाधर 'बागी'

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दलित बस्तियां कभी उदास न होती
अगर दमन से दबी आवाज न होती
सदियों पहले सम्मान मिल अगर जाता
अस्मिता किसी के द्वार नीलाम न होती
मेरे संघर्ष का इतिहास भी नहीं मिलता
अगर आवाज उठी बार-बार न होती