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हुनका बिना / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
Kavita Kosh से
तनियें देर केॅ देरी विशेष लागै छै।
थोड़बे दूर केॅ दूरी विदेश लागै छै।
की बोलियै हाल अप्पन,
बोललॅ नैं जाय छै।
आरो बिना बोलनें अजी!
रहलो नैं जाय छै।
गोड़ बिना जिनगी कलेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी.....विदेशलागै छै।
हुनका बिना चैन कहाँ?
हुनका बिना रैन कहाँ?
हुनका बिना शैन कहाँ?
हुनका बिना बैन कहाँ?
आगू में रहला सें हुलेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी....विदेश लागै छै।
बोलला बतियैलासें
दिन कटी जाय छै।
दुख सुख सुनैलासें
दरद घटी जाय छै।
कटियो टा बिछुड़ना परदेश लागै छै।
तनियें देर केॅ देरी विशेष लागै छै।
थोड़बे दूर केॅ दूरी विदेश लागै छै।
रचना-जून, 2014, अंगिका लोक, जुलाई-सितम्बर, 2015