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हूँ / शक्ति चट्टोपाध्याय
Kavita Kosh से
अकसर लगता है
कि मैं बड़े मज़े में हूँ,
सोता हूँ, बैठता हूँ
खाता हूँ, खड़े रहता और दौड़ता भी हूँ,
बहुत-से लोग मेरी तरह ऐसा नहीं कर पाते।
बहुतों के यहाँ बेटियाँ नहीं होतीं
इसलिए वे पालते हैं पक्षी
गेहूँ देते हैं, धान देते हैं
कितना कुछ करते हैं
मेरे दुःख और सुख से परिपूर्ण है मेरा घर
कभी-कभी लगता है
कि मैं बड़े मज़े में हूँ।
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी