भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हृदय / कविता वाचक्नवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हृदय


कैसा बावला बालक है रे!
न झुनझुने की झनझनाहट से बहलता है
न घंटियों से
न खिलौनों से,
न खेल से--।
नेह की ऊष्मा का
माध्यम
क्या तो हो भला?