हे! विषपायी तुम्हें प्रणाम / बीना रानी गुप्ता
हे! विषपायी तुम्हें प्रणाम
हर लेते सबके संकट
करते हर प्राणी का कल्याण
हे! शुभ्रवर्णी चन्द्रधर
विराजें सदा कैलाश शिखर
सोहे संग शैलसुता
कर जोड़ें शिवउमासुत
करें रक्षा सुत कार्तिकेय
हे! विश्वनाथ कैसे करूँ
तुम्हारा बखान..
भागीरथ का विकट तप
माँ गंगा के उर में उमड़ी ममता
उद्दाम वेग से स्वर्ग लोक से
अवतरित हो रही गंगा
कौन संभालेगा यह आवेग?
आशुतोष की खुली जटायें
प्रबल वेग रोका क्षण भर में
हे! विषपायी तुम्हें प्रणाम
सृष्टि यह न बची होती
धारण न करते हे! गंगाधर..
निर्बल के तुम सदा सहायक
चौंसठ कलाओं से हुआ विहिन सुधाकर
क्षय रोग से पीड़ित शापित
असहाय चन्द्र को किया शिरोधार्य
तभी चन्द्रशेखर कहलाए..
हे! मृत्युंजय तुम्हे नमन
जब हुआ समुद्र मंथन
निकला हलाहल
मचा कोलाहल
देव असुर सभी भयभीत
कैसे बचेगी यह सृष्टि?
कौन करे यह विषपान
विषकुम्भ को लगाया अधरों पर
क्षण भर में विषपान किया
हे! विषपायी हे! नीलकंठ
करते हो सदा कल्याण
हे! महादेव दो ऐसा वर
तुमसा हो मेरा पाथेय
गरल पीकर रहूँ अमर
मेरे उर में बसे शिवत्व
हे! ज्योतिर्मय लूं मैं शिवसंकल्प
करूँ यह जीवन धन्य धन्य
हे! सर्वेश्वर तुम्हे प्रणाम
सदा करो सबका कल्याण।