भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे दयामय दीन पालक अज विमल निष्काम हो।
जगतपति जग व्याप्त जगदाधार जग विश्राम हो।
दिवस-निशि जिसकी प्रबल भय रोग कि हो वंदना।
उस दुखी जन के लिए तुम वास्तविक सुख धाम हो।
क्लेश इस कलिकाल का उसको कभी व्यापे नहीं।
ह्रदय में जिनके तुम्हारा ध्यान आठो याम हो॥
एक ही अभिलाष है पूरी इसे कर दो प्रभो।
मेरी रसना पे सदा रस 'बिन्दु' मय तव नाम हो॥