हे निष्ठुर निर्मोही बादल / भुवनेश्वर सिंह भुवन
सुखलै ताल तलैया, खाली घट राधा गोरी के,
धरती के तन-मन उदास, छाती फाटे होरी के,
चोंच खोलि केॅ उड़ै चिरैया, बूँद-बूँद के आस,
धुइयाँ-धुइयाँ धुरा उड़ाबै गामे-गाम पियास,
बाट जोहतें बितलै सावन, नै मृदंग नै मादल,
हे निष्ठुर निर्मोही बादल!
मीत! यक्ष के पाती लेॅ केॅ कहाँ-कहाँ बौवैल्हौ,
एक विरहिनी के विपदा पर सौ-सौ लोर बहैल्हौ,
आय बोलाबै कृषक कुमारी, खेतॅ के हरियाली,
बिरह विदग्धा आकुल कलिका; आबॅ हो बनमाली!
तोहरा बिना वियाकुल अँखिया, रोज मिघरलै काजल,
हे निष्ठुर निर्मोही बादल!
अग-जग शोर मचैने आबॅ, रिमझिम रस बरसैनै आबॅ,
सबुजा चुनर भिजैने आबॅ, अंग-अंग सरसैने आबॅ,
सृजन-ताल पर बजै नगाड़ा, कजरी-झुमटा गैने आबॅ,
चौमासा बरमासा साथें, ढोल-झाल झमकैने आबॅ,
महकेॅ मह-मह खेत-कियारी, आर-आर पर रुनझुन पायल!
हे निष्ठुर निर्मोही बादल!