भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हेत / सिया चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अरे हेत
थूं आयग्यो कांईं
कठै रैयो इतरा दिन ?
कुण रै सुपना रा
चादरा बणाया
कुण री थूं नींद उड़ाई
कुणसी गोरड़ी रो
रूप कर्यो चोरी ?

अब थूं
म्हारै खन्नैं
कांईं लेबां नै आयो है ?
म्हारो बो मन तो
कोई लेयग्यो
अर इस्यो बरत्यो
कै करदी
तरेड़ां ई तेरड़ां
अबै थन्नैं
म्हैं राखूं कठै ?