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हेनोॅ विष-विष शिशिर / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

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हेनोॅ विष-विष शिशिर,
रहै नै दै छँ यें देहोॅ केॅ थिर
हेनोॅ विष-विष शिशिर।

जाड़ोॅ रोॅ जोगिन दै चारो दिश फेरा
घुमी-घुमी बान्हैं कुहासोॅ के घेरा
सब्भे बन्हैलै जाय गोड़ोॅ सें सिर
हेनोॅ विष-विष शिशिर।

जेकरोॅ नै भागोॅ में रूई नै दुई
बोरसी के बीचोॅ में ऊ छुईमुई
दलकै छै, दलकलोॅ रातिके पहिर
हेनोॅ विष-विष शिशिर।

हुनकोॅ वियोगोॅ में जे रङ मन दहकै
कैहिनें नी हाड़-माँस लकड़ी रङ लहकै
जाड़ां तेॅ जोरने रङ पोरै रुहिर
हेनोॅ विष-विष शिशिर।

-6.1.97