भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हेली रातूं जागै थूक बिलोवां / सांवर दइया
Kavita Kosh से
हेली रातूं जागै थूक बिलोवां
घर सूं कांई लागै थूक बिलोवां
देखो अबै सांस आवैला सोरी
नाक कटाई नागै थूक बिलोवां
काम रै नांव रैयो औ ई काम
आवो बैठां सागै थूक बिलोवां
ताका-झाका करती पाड़ौसी री
छोरी घर सूं भागै थूक बिलोवां
शहर सूं बावड़ बतावै बाबूड़ो
बै सीटी सुण भागै थूक बिलोवां