भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
है कोई संत राम अनुरागी / धरनीदास
Kavita Kosh से
है कोई संत राम अनुरागी, जाकी सुरति साहब से लागी।
अरस परस पिवके संग राती, होय रही पतिबरता।
दुनिया भाव कछु नहिं समझै, ज्यों समुंद समानी सरिता।
मीन जायकर समुंद समानी, जहँ देखै जहँ पानी
काल कीर का जाल न पहुंचै, निर्भय दौर लुभानी।
बावन चंदन भौंरा पहुंचा जहँ बैठ तहँ गंधा।
उड़ना छोड़ के थिर हो बैठा निसदिन करत अनंदा।
जन दरिया इक राम भजन कर, भरम बासना खोई।
पारस परस भया लोह कंचन बहुर न लोहा होई।