भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है प्रत्येक अभाव-दशा में / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग वागेश्री-ताल कहरवा)
 
है प्रत्येक अभाव-दशा में, मेरा पूर्ण सहारा ईश्वर।
है मेरी प्रत्येक भूखमें भोजन देता प्यारा ईश्वर॥
चलता मेरे साथ निरन्तर मार्गदर्शक मेरा बनकर।
रहता मेरे संग सदा वह दिनभर प्रतिपल मेरा ईश्वर॥
मैं अब प्रज्ञावान्‌ हो गया, छायी जीवनमें सच्चा‌ई।
धीरज, दया प्रेमकी मुझमें ललित त्रिवेणी है लहरा‌ई॥
सब कुछ हूँ मैं, सब कुछ कर सकता, बन सकता हूँ मैं निश्चय।
क्योंकि बस रहा मेरे अंदर सत्यरूप वह ईश कृपामय॥
रोग न मुझको छू सकता है, मेरा स्वास्थ्य वही ईश्वर है।
मेरे लिये सतत तत्पर वह अमित अचूक शक्ति का घर है॥
ईश्वर ही मेरा सब कुछ है नहीं जानता मैं को‌ई डर।
क्योंकि यहाँपर सुविराजित हैं पावन प्रेम, सत्य, परमेश्वर॥