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है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है / 'रसा' चुग़ताई
Kavita Kosh से
है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है
वो चेहरा जो अभी देखा नहीं है
बहर-सूरत है हर सूरत इज़ाफ़ी
नज़र आता है जो वैसा नहीं है
इस कहते हैं अंदोह-ए-मानी
लब-ए-नग़मा गुल-ए-नग़मा नहीं है
लहू में मेरे गर्दिश कर रहा है
अभी वो हर्फ़ लिक्खा नहीं है
हुजूम-ए-तिश्नगाँ है और दरिया
समझता है कोई प्यासा नहीं है
अजब मेरा क़बीला है कि जिस में
कोई मेरे क़बीले का नहीं है
जहाँ तुम हो वहाँ साया है मेरा
जहाँ मैं हूँ वहाँ साया नहीं है
मुझे वो शख़्स ज़िंदा कर गया है
जिसे ख़ुद अपना अंदाज़ा नहीं है
मोहब्बत में ‘रसा’ खोया ही क्या था
जो ये कहते कि कुछ पाया नहीं है