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हैं वसंत केकरा लेॅ? / श्रीस्नेही
Kavita Kosh से
नै हमरा नै तोर्हा लेॅ उपवन-वन-कली-रस पीयै जे भौंरा लेॅ।
है वसंत ओकरा लेॅ।
घुँघरैलऽ बाल जहाँ सज्जित बदन-भाल।
सिंदुरिया मांग जहाँ मखमलिया सेज-साल॥
चाँद के चँदनिया में घुँघरु बजाबै जें है वसंत ओकरा लेॅ।
है वसंत केकरा लेॅ?
मोदित छै मऽन जहाँ अतमा विनोदित।
घरऽ दुआरी में लछमी सुशोभित॥
रंगऽ के धारा में रंगलऽ छै मऽन जहाँ है वसंत ओकरा लेॅ।
है वसंत केकरा लेॅ?
दुनिया से दूर जे घरऽ के घेरा सें।
विचरै सुदूर जाय चिंता-अंधेरा सें॥
झलकै छै झलमल जेकरऽ महल-कुंज है वसन्त ओकरा लेॅ।
है वसन्त केकरा लेॅ?
दाना लेॅ तरसै छै घरऽ के लोग जहाँ।
मालिखै ने खींची लगाबै छै भोग जहाँ॥
चेहरा पेॅ लाली नै, खाली छै पेट भाय कि वसन्त ओकरा लेॅ।
है वसन्त केकरा लेॅ?