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हैं हम सभी क़ैदी / राजा होलकुंदे
Kavita Kosh से
सड़क-सड़क पर सभी ओर
कैसे खचाखच भर आए हैं
मनुष्यों के गुलमोहर !
पक्षियों के कोलाहल से
गदगदा गया है आकाश
एक दूसरे के कंधों पर
विश्वास से सुस्ताने !
किसी को कुछ कर्ज़ देना हो तो
क्या दे सकता हूँ
कवि रूप में ।
कोमल स्याही से
काग़ज़ पर लिखे कुछ शब्द
अथवा तारों की व्यापक उदासीनता !
हैं हम सभी क़ैदी
एक विराट कारागृह में
केवल समय काटने वाले ।
उसके लिए कुछ तो नष्ट करने वाले,
कुछ नए का निर्माण करने वाले
जैसे कोई नवोढ़ा
काढ़ती रहती है कसीदा
कपड़े पर
केवल समय गूँथने के लिए
मूल मराठी से सूर्यनारायण रणसुभे द्वारा अनूदित