हो आज़ाद किरण... / रमेश रंजक
घर-घर खील-खिलौने लाई ।
बच्चों की दीवाली आई ।।
उतर गोद से मुन्नू आया
फुलझड़ियों को हाथ बढ़ाया
राधा लगी डराने उसको
’ताता है’ छूना मत इसको
मुन्नू को आ गई रुलाई ।
जा पहुँचा माँ के आँचल में
सबकी करी शिकायत पल में
साथ लिए पापा जी आए
अपने संग पटाखे लाए
मुन्नू ने फुलझड़ी जलाई ।
छोटी-सी कन्दील उठाए
बल खाते गप्पू जी आए
बोले -- चिनगाली अनाल की
छब छे ऊँची छिब कुमाल की
पप्पू को यह बात न भाई ।
नाचे ताली बजा-बजा कर
कमरे में आँगन में छत पर
खील-बताशे जेबों में भर
बोल रहे थे तुतलाते स्वर
चाचा जी ला रहे मिथाई ।
माचिस लाल हरी पर झँझट
कहीं चटाई होती फट-फट
चकरी घूम रही थी फर-फर
जलती मोमबत्तियाँ ऊपर
नभ को छूती चली हवाई ।
बच्चों का यह छोटा-सा दल
काट रहा है तम की साँकल
हो आज़ाद किरण का जीवन
सच है भोर धरा का दर्पण
हर मन में यह बात समाई ।
घर-घर खील-खिलौने लाई ।
बच्चों की दीवाली आई ।।