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हो जाये मन पहले जैसा / छाया त्रिपाठी ओझा
Kavita Kosh से
हो जाये मन पहले जैसा।
कह दो मीत आज कुछ ऐसा।
थम जाये नयनों का पानी
रुके हृदय की भले रवानी
नेह सुधा यों बरसाओ तुम
हो जाए फिर चूनर धानी
अगर साथ तुम फिर दुख कैसा।
हो जाये मन पहले जैसा।
कह दो मीत आज कुछ ऐसा।
अंतर की पीड़ा मिट जाये
नज़र तुम्हारी आस जगाये
जब-जब याद करूं मैं तुमको
मन का दीप स्वयं जल जाये
क्या करना है रुपया पैसा।
हो जाये मन पहले जैसा।
कह दो मीत आज कुछ ऐसा।
आकर बैठो पास हमारे
आंचल में टांकों तुम तारे
झुक जाये फूलों की डाली
और हवा फिर बाल संवारे
मिल जाये जैसे को तैसा।
हो जाये मन पहले जैसा।
कह दो मीत आज कुछ ऐसा।