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हो रबझब की गैल डिगर गया / हरियाणवी
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हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हो रबझब की गैल डिगर गया मनैं कोन्या पाटा तोल।
हो पिया एक कसर कर गया बोग्या डूंगा क्यार।
मेरा जेठा बोली मारता तेरा बिना नलाया खेत।
हे मैं ठाके कसोला चाली मनैं जाये नलाया ईख।
रास्ते में डाकिया मिल गया बालम का ले रहा तार।
डाकिया बांच सुणावण लाग्या थारे गुजर गये भरतार।
हे मैं उलटी घर ने बाव्हड़ी कुरसी पे जेठा बैठा मूढ़े पर लम्बरदार।
हे मैं भीतर बड़ के रोई म्हारे गुजर गये भरतार
मेरी सासड़ धीर बन्धावे मत रोवे लाल की नार।
म्हारी छाती भी देखो हे बोझ भरी दस मास।
मेरी नणदल धीर बंधावै मत रोवे बीर की नार।
मेरा जेठा राजी हो रहा भाई के थ्यागे क्यार।
मेरा देवर राजी हो रहा भाई की थ्यागी नार।
पिनसिन ज्यादा बंध गई महीने के एक हजार।
मैं खेत बुवालूं हाली राखलूं हे दो चार।