भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होठों पर कुछ मधुबन जैसा / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
होठों पर कुछ मधुबन जैसा
आँखों में है सावन जैसा
ख़ुशी हुई है उससे मिल कर
मन अंदर है नर्तन जैसा
असहनीय है पीड़ा तेरी
क्रंदन तेरा बिरहन जैसा
तुझ बिन है सब रीता रीता
कुछ तो होता जीवन जैसा
किसकी राह तके है जोगन
दर्द सहे है बिरहन जैसा
इक असीम सागर जैसा है
प्रेम नहीं हैं बंधन जैसा