भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होठों पर कुछ मधुबन जैसा / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होठों पर कुछ मधुबन जैसा
आँखों में है सावन जैसा

ख़ुशी हुई है उससे मिल कर
मन अंदर है नर्तन जैसा

असहनीय है पीड़ा तेरी
क्रंदन तेरा बिरहन जैसा

तुझ बिन है सब रीता रीता
कुछ तो होता जीवन जैसा

किसकी राह तके है जोगन
दर्द सहे है बिरहन जैसा

इक असीम सागर जैसा है
प्रेम नहीं हैं बंधन जैसा