भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
होड लगी / पद्मजा बाजपेयी
Kavita Kosh से
दीपों की होड लगी, तारों के संग री,
ऊपर तुम चमकोगे, नीचे हम आज री,
अमावस की देख रात, पूनम-सी लगे आज,
जगमग जग दीख रहा, खेत और मकान री।
दीपों में होड लगी...
केशर, सिन्दूर लाल, दूर्वा, दहि, फूल, हार,
मीठे पकवानों की चलों सजाएँ थाल री,
तोरण, ध्वज लगे द्वार, दीया और बाती है,
लक्ष्मीजी विराजी है, चलो करे आरती।
दीपों में होड लगी...
नयी किरण, नयी आस, श्री लहर फैल रही,
ग्राम की धरती, हिल-मिल देखो चहक रही,
जन-जन का क्लेश हरो, दया रूपी भारती,
वन्दना है बार-बार, हो प्रसन्न मातुश्री।
दीपों में होड लगी...